युद्ध और हिंसा

 

    अभी बहुत दिन नहीं हुए, इस शताब्दी के आरम्भ में, शायद सबसे बड़ी खूनी लड़ाई में कई बार करोड़ों आदमियों के भाग्य का निर्णय युद्धरत राज्यों के प्रमुखों की वित्तीय सट्टेबाजी के द्वारा हुआ करता था ।

 

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    हे मनुष्यो !  तुम ''शान्ति'' जैसे उदात्त शब्द का उच्चारण भी कैसे कर सकते हो जब कि तुम्हारे हृदयों में शान्ति नहीं है ।

 

    युद्ध समाप्त हो गया, ऐसा तुम कहते हो, लेकिन फिर भी हर जगह मनुष्य मनुष्य की हत्या कर रहा है और केन अब भी अपने भाई का रक्त बहा रहा है ।

 

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    बाइबल में भगवान् केन को बुलाकर पूछते हैं, ''तुमने अपने भाई के साथ क्या किया ? ''

 

    आज मैं मनुष्य को बुलाती हूं और उससे पूछती हूं, ''तुमने धरती के साथ क्या किया है ?"

 

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     उन सब लोगों के लिए जिन्हें भागवत कृपा ने उस भयानक संघर्ष से दूर रखा है जो मनुष्यों को चीर-फाड़ रहा है, अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का एक ही उपाय है, वह है भगवान् के काम के लिए अपनी पूरी सत्ता को पूर्णतया अर्पित कर दें ।

मई १९४०

 

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     १ केन-आदम और हौवा का बड़ा बेटा । ईर्ष्या से उसने अपने भाई आबेल को मार डाला, फिर शरणार्थी बन गया । माना यह जाता है कि धरती पर यह पहली हत्या थी ।

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    हिटलर के बारे में चिन्ता न करो । कोई आसुरी शक्ति हमेशा के लिए भागवत शक्ति के सामने खड़ी नहीं रह सकती, उसकी पराजय की घड़ी अवश्यम्भावी है ।

२७ मई, १९४०

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     विजय आ गयी है, तेरी विजय, हे नाथ, जिसके लिए हम तुझे अनन्त धन्यवाद देते हैं ।

 

     लेकिन अब हमारी तीव्र प्रार्थना तेरी ओर उठती है । तेरी शक्ति द्वारा और तेरी शक्ति से ही विजयी लोगों ने विजय पायी है । वर दे कि वे अपनी सफलता में इसे भूल न जायें और उन्होंने तेरे आगे संकट की तीव्र व्यथा के समय जो प्रतिज्ञाएं की हैं उन्हें वे भूल न जायें । उन्होंने युद्ध करने के लिए तेरा नाम लिया है, वर दे कि वे शान्ति स्थापित करते समय तेरी कृपा को भूल न जायें ।

१५ अगस्त, १९४५

 

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परमाणु-बम  

 

     परमाणु-बम अपने-आपमें एक बहुत अद्‌भुत उपलब्धि है; वह जड़ प्रकृति पर मनुष्य की बढ़ती हुई शक्ति का प्रतीक है । लेकिन खेद की बात यह है कि यह जड़-भौतिक प्रगति और प्रभुत्व आध्यात्मिक प्रगति और प्रभुत्व का परिणाम या उसके साथ मेल खाती हुई चीज नहीं है । केवल आध्यात्मिक शक्ति में ही इस प्रकार की खोज से आने वाले भयानक संकट का विरोध और प्रतिवाद करने की सामर्थ्य है । हम प्रगति को न तो रोक सकते हैं न रोकना ही चाहिये लेकिन हमें उसे भीतर और बाहर के सन्तुलन में प्राप्त करना चाहिये ।

३० अगस्त, १९४५

 

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    किसी उद्देश्य की विजय के लिए हिंसा कभी भी बहुत अच्छा साधन नहीं होती । कोई अन्याय द्वारा न्याय, धृणा द्वारा सामञ्जस्य प्राप्त करने की आशा केसे कर सकता है ?

 ९ अक्तूबर, १९५१

 

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     'क' ने पूछा है कि क्या आपने हाल में संसार की स्थिति के बारे में कुछ कहा है । वह जानना चाहता है कि क्या एक और विश्वयुद्ध या किसी गम्भीर विपदा की सम्भावना है ?

 

उससे कह दो कि मैं भविष्यवक्ता बनने से इन्कार करती हूं ।

३ फरवरी, १९६२

 

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    यह पुराना विचार कि शक्ति को प्रभावकारी बनाने के लिए विध्वंस आवश्यक है, एक ऐसा सीमाबन्धन है जिसे पार करना चाहिये ।

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    विनाश का स्वागत करने का कोई सवाल ही नहीं है, हमें उसके दिये पाठ को सीखना चाहिये ।

 

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    मैं हिंसा को पूरी तरह अस्वीकार करती हूं । जिस लक्ष्य को पाने की हम अभीप्सा करते हैं उसकी ओर जाने वाले मार्ग पर हर हिंसात्मक क्रिया पीछे की ओर कदम है ।

 

    भगवान् हर जगह हैं और हर जगह परम रूप से सचेतन । ऐसा कोई काम न करना चाहिये जो भगवान् के सामने न किया जा सके ।

६ मई, १९७१

 

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    जब तक तुम किसी व्यक्ति को पीटने की योग्यता रखते हो, तब तक तुम खुद भी पीटे जाने के लिए दरवाजा खोले रहते हो ।

 

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    सार्वजनिक प्रस्फोट : कीचड़ की दानवी क्रूरता जो प्रकाश से द्वेष और धृणा करती है ।

 

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    हिंसा और क्रूरता में फर्क है । हिंसात्मक मानसिक अवस्था में मनुष्य भारी भयानक क्रिया कर सकता है लेकिन बाद में उसके लिए बहुत दुःखी होता है, जब कि क्रूर व्यक्ति ठण्डे दिमाग के साथ नृशंस रूप से कार्य करता है । हर चीज पूर्वायोजित होती है और मानों करने के लिए की जाती है ।

 

सुरक्षा और संरक्षण

 

    बमबारी के समय, उन लोगों से जो अपनी चमड़ी के लिए डरकर भाग निकलते हैं:

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    तुम ही सकुशल क्यों रहो, जब सारा संसार संकट में है ? तुम्हारा विशेष पुण्य, तुम्हारा विशेष गुण क्या है जिसके लिए तुम्हें विशेष रूप से संरक्षण दिया जाये ?

 

    भगवान् के अन्दर ही संरक्षण है, उन्हीं की शरण लो और समस्त भय को दूर फेंक दो ।

२६ मई, १९४२

 

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    (उन लोगों के सम्बन्ध में जिन्होंने सितम्बर १९६५  के भारत-पाक युद्ध के समय पॉण्डिचेरी आने की स्वीकृति मांगी थी ।)

 

वे पॉण्डिचेरी आ सकते हैं लेकिन जो डरते हैं वे सब जगह डरते हैं और जिसमें श्रद्धा है वह हर जगह सुरक्षित है ।

९ सितम्बर, १९६५

 

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    सर्वोत्तम सुरक्षा है भागवत कृपा में अचल श्रद्धा ।

 

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    संरक्षण सक्रिय हे और वह तभी प्रभावकारी हो सकता है जब तुम्हारी ओर से स्थायी और सम्पूर्ण श्रद्धा हो ।

 

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    आओ, हम अपने-आपको पूरी तरह और सचाई के साथ भगवान् को दे दें, तब हम उनका भरपूर संरक्षण पायेंगे ।

 

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    पूर्ण संरक्षण : वह जिसे केवल भगवान् ही दे सकते हैं ।

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    चैत्य सुरक्षा : भगवान् के प्रति समर्पण के परिणामस्वरूप मिलने वाली सुरक्षा ।

 

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    भौतिक सुरक्षा भगवान् के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और कामनाओं के अभाव से सम्भव होती है ।

 

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    हमेशा भागवत उपस्थिति पर एकाग्र होओ तो सुरक्षा अपने- आप आ जायेगी ।

 

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    समस्त गतिविधियों का ऐकान्तिक रूप से भगवान् की ओर मुड़ना : कुशलक्षेम पाने का सबसे पक्का उपाय है ।

 

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    जो कुछ भगवान् को दिया गया है उसके सिवा कुछ भी सुरक्षित नहीं है ।

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